Polluted water, air, soil for future generations

Jul 15, 2019 · 9m 55s
Polluted water, air, soil for future generations
Description
10 मिनट की तेज बारिश के बाद मौसम खुशनुमा हो जाता है| 10 मिनट की बारिश के बाद होने वाली बारिश का पानी पौधों, जलीय जीवों एवं मनुष्य के पीने लायक होता है| ऐसा लगता है कि ये बातें केवल अब ख़्वाब की बातें हैं| क्योंकि दो दिन लगातार बारिश होने के बावजूद बारिश के पानी में कार्बन तत्वों का पाया जाना इस बात का सूचक है कि विकास के नाम पर पनपने वाले व्यवसायिक उद्योग हमें विकास नहीं विनाश को और ले जा रहे हैं| उत्पादन की अंधी दौड़ में लगा इंसान प्रकृति जल, मिटटी और वायु को प्रदूषित करता आठों दिशाओं में गंदगी फैलाने का कार्य कर रहा है| वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के बाद भी नए वृक्षों का न लगाया जाना, वायु, मिटटी और जल में निरंतर कार्बनिक पदार्थों को मिलाने के बावजूद स्वच्छ पर्यावरण के झूठे दावे पेश करना, विभिन्न जहारिलें रसायनों से नई-नई बीमारियों को उत्पन्न करने वाला इंसान झूठ के आडम्बर में इतना ढक गया है कि उसे अपने किए पर कोई पछतावा भी नजर नहीं आ रहा|
फसलों के लिए उपयोगी बताई जाने वाली यूरिया को सर्वप्रथम १७७३ में मूत्र में फ्रेंच वैज्ञानिक हिलेरी राउले ने खोजा था परन्तु कृत्रिम विधि से सबसे पहले यूरिया बनाने का श्रेय जर्मन वैज्ञानिक वोहलर को जाता है। लेकिन भारत में यूरिया ने 19वीं सदी में प्रवेश किया, जिसका नतीजा यह रहा कि किसान अपने जीवन से पालतू दुधारू जानवरों को कम करता चला गया, क्योंकि उसे लगता था कि गोबर की गंदगी से छुटकारा पाकर वह गोबर का कार्य यूरिया से संपन्न कर लेगा| आरंभिक समय में फसलों की बढती पैदावार ने यूरिया को पूरे देश में एक बीमारी की तरह गाँव-गाँव में पहुंचा दिया| लेकिन आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल के कारण यूरिया के रासायनिक तत्व भारतभूमि को कठोर बनाते चले गए| और नतीजा उपज कम हो रही है और जमीन के बंजर होने की शिकायतें भी बढ़ती जा रही हैं, इसलिए किसान यूरिया से तौबा करने लगे हैं। एक हालिया अध्ययन में पहली बार भारत में नाइट्रोजन की स्थिति का मूल्यांकन किया गया है जो बताता है कि यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल ने नाइट्रोजन चक्र को बुरी तरह प्रभावित किया है।
आज का वक्त इतना एडवांस हो गया है कि गांव हो या शहर अंग्रेजी बोलना अब सिर्फ ट्रेंड ही नहीं बल्कि लोगों की जरूरत भी बन गया है। यह केवल अंग्रेजी बोलने तक सिमित नहीं अंग्रेजी दवाओं का चलन तो अंग्रेजी बोलने से भी कईं गुना बढ़ चूका है, लेकिन अंग्रेजी दवाएं बनाने वाली कम्पनियां आपके सुखद स्वास्थ्य की कामनाएँ करें ऐसा कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आता, एक वृहद् कारोबार के तहत पनपता यह बाजार भी मानवजगत के लिए ही नहीं अपितु सम्पूर्ण जीवन के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रहा है| दवा बनाने के बाद निकला कचरा जहाँ मिटटी और वायु को प्रदूषित कर रहा है वहीँ अँधाधुंध दवाओं के सेवन के दुष्परिणाम भी शरीर और मन पर आघात कर रहे हैं| हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से बुधवार को एक विज्ञप्ति जारी की गई जिसमें बताया गया कि ड्रग टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड की सिफारिशों के आधार पर इन दवाओं की बिक्री पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा माना जा रहा है कि अभी सरकार 500 और दवाओं पर बैन लग सकती है, जिन्हें देशभर में बेचा और इस्तेमाल किया जा रहा है। इन दवाओं के अलावा 6 एफडीसी (फिक्स डोज कॉम्बिनेशन) दवाएं ऐसी भी हैं, जिनकी खुली रोक पर बिक्री लगाई गई है यानी इन दवाओं को बिना डॉक्टर के लिखे पर्चे के नहीं खरीदा जा सकेगा। ऐसा माना जा रहा है कि इन दवाओं के बैन होने से 1500 करोड़ रुपए का दवा कारोबार प्रभावित होगा। लेकिन इतने मात्र से क्या हम खुद को सुरक्षित रखने में कामयाब हो जायेंगे?
भारत का कपड़ा उद्योग कभी चरम सीमा पर था और शहर के शहर विभिन्न प्रकार के कपड़ों की कारागिरी के नाम से आज भी प्रसिद्ध हैं| लेकिन सस्ता माल बनाने की चाह में घटिया कैमिकल से कपडे के रंगों का चयन नायलॉन सादा कपड़े, कोट, वर्दी, शर्ट, पतलून, जैकेट का उत्पादन करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है| गुणवत्ता पर नियंत्रण के लिए उत्पादन, रंगाई, कपड़ों की प्रसंस्करण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भारत सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं अनेक विभाग बना कर उत्पादकों पर नजर रखने का कार्य किया जा रहा है लेकिन बावजूद इसके धरातल और जीवन को विनाश के गर्त में धकेलने वाले प्रसाधनों का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है यही नहीं सरकार की नजर में ना आये इसके लिए उत्पादन स्थल पर ही गहरे खड्डे बना कर रंगाई में प्रयुक्त घातक कैमिकल जमीन के पानी में फेंक दिए जाते हैं जिससे भूजल भी प्रदूषित हो रहा है| और ऐसे ही कैमिकल द्वारा निर्मित वस्त्र मनुष्यों में चर्म रोगों के विकास का कारण भी बन रहे हैं|
धातुओं पर नित नए प्रयोगों में भी घातक रसायनों का इस्तेमाल बढ़ रहा है और फिर यही कचरे के रूप में नदी नालों में प्रवाहित कर दिया जाता है| जिससे जलीय जीवन तो प्रभावित होता ही है साथ ही भूजल, नदी व नालों का जल भी भयंकर प्रदूष्ण की स्थिति को क्रियान्वित करता है| जिससे बच्चों में घटता कद, दूषित मानसिकता, अविकसित अंगों के दृश्य, साधारण तौर पर देखे जा रहे हैं| पेयजल संकट से जूझ रहे इलाकों में इस प्रकार के नदी-नालों से पीने के लिए पानी का इस्तेमाल ज्यादा घातक सिद्ध हो रहा है| जिससे बच्चों में ही नहीं अपितु पूर्ण जीव जगत में भयावह रोगों का संचार देखने में आ रहा है| मोदी सरकार ने कुछ बारह माह बहने वाली नदियों को प्रदुषण मुक्त करने का बीड़ा तो उठाया है लेकिन जो घातक केमिकल इस प्रकार की औद्योगिक इकाइयों से बह कर जीवन को अस्त-व्यक्स्त करने में लगे उस पर किसी प्रकार की जवाबदेही सरकार की नहीं बनती?
बढती मंहगाई पर लगाम लगाने के चक्कर में, उत्पादन क्षमता को सरल बनाने की चाह में, अधिक से अधिक उत्पादन कर, दुनिया को घनचक्कर बनाने की होड़ में सबसे आगे हैं प्लास्टिक| लेकिन कई शोधों से यह बात सामने आई है| कि प्लास्टिक के बने सामान को हम जितना सुलभ और आसानी से इस्तेमाल में लाते हैं वह हर किसी के लिए हानिकारक है| प्लास्टिक से सिर्फ इंसान को ही नहीं बल्कि पेड़, पौधे, जमीन, मिट्टी, जल, और वायु सबको नुकसान हो रहा है लेकिन सब जानते हुए भी हम इनका इस्तेमाल रोकने की जगह बढा रहे है| प्लास्टिक की बोतल में पानी लेकर रखना और पीना आज कल का फैशन बन गया है| लेकिन इन बोतल में मिले हुए रसायन पानी में मिलकर पानी को नुकसानदेह बना सकते है| प्लास्टिक के सामान के उपयोग से 90% कैंसर की संभावना होती है| यह वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित किया जा चूका है| बहुत से देशों ने रोजाना के खाद्य प्रदार्थों में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध भी लगाया है| इसके बावजूद बहुत स विकसित देशों अमेरिका में 109, यूरोप में 65, चीन में 45 और ब्राजील में 32 किलो प्रति व्यक्ति जबकि भारत में 9.7 किलो प्लास्टिक प्रति व्यक्ति खपत का आंकड़ा है और यह प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रहा है|
पैट्रोल, डीजल सहित अनेक गैसों का बढ़ता असीमित उपयोग भी वातावरण को नुक्सान पहुँचाने में सहायक सिद्ध हो रहा है| साधारण तौर पर देखने में तो लगता है कि ये तेल और गैसें इस्तेमाल के बाद समाप्त हो जाते हैं लेकिन होता इसका उलट है| ये सभी तेल और गैसें तरल रूप से गैस रूप में परिवर्तित हो हवा में मिल जाते हैं| निरंतर बढती गाड़ियों और वाहनों का कारवाँ जहाँ धरती पर बोझ के रूप में बढ़ता जा रहा है, वहीँ इससे होने वाले प्रदूष्ण के चलते हवा भी मलीन हो रही है|
उपरोक्त संसाधन कहने को तो मानव जीवन की तरक्की के साधन बने हैं लेकिन वैभवशाली जीवन जीने की चाह रखने वाला मानव अपनी आने वाली पीढ़ियों को खैरात में प्रदूषित जल, प्रदूषित वायु, प्रदूषित मिटटी दे रहा है| न तो हम अपने बच्चों को अपने संस्कार देने में कामयाब हुए हैं और न ही स्वस्थ वातावरण| सारी जिम्मेदारी सरकार पर डाल कर अपने कर्मो से च्यूत होता इंसान अपने लिए नर्क का निर्माण करने में लगा है| आलस से भरपूर वैभव जीवन को अपनाता यह गंदगी फैलाने वाला इंसान क्या अपनी उस पीढ़ी के बारे में भी नहीं सोच सकता जिसे वह दिलों-जान से अपना सब कुछ देने के लिए तैयार रहता है?
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Author Tatshri
Organization Tatshri
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