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Spoken word poetry in Hindi by Lokesh Gulyani
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19 NOV 2024 · आज मैं अपने बाप के ब्रांड पर आ गया। एक अलग सा ही नशा मुझ पर छा गया। वो कमरे में उड़ता धुआं, शीशे से पिघलता आब, ग्लास में अपनी शक्ल इख्तियार करता हुआ, उन शामों के कहकहे एक दीवार से उड़कर दूसरी में समाने लगे।
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19 NOV 2024 · हर दस साल बाद, बीते दस साल व्यर्थ लगते हैं। और जब आने के मतलब का खुलासा होता है, समय ख़त्म हो चुका होता है।
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19 NOV 2024 · खेल चलते रहना चाहिए, यही एकमात्र नियम है खेल का, ये खेल भूखे पेट का है, भूखी आंखों का है, छोटे अंगिया चोली का है, ये खेल आँखों से आँखें मिला कर मांगने का है, कुछ मिल जाने पर आपस में छीनने का है।
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27 OCT 2024 · बत्ती बुझाने से पहले एक बार देख लेना चाहिए। लोग कमरों में हैं या नहीं? दरवाज़े बंद हैं या नहीं? चीज़ें अपनी जगह है या नहीं? दिल धड़क रहे हैं या नहीं? आँखें बंद है, या शून्य में तक रही है। और तक रही है तो क्या ठंडी दीवारों के पार देख पा रही है?
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27 OCT 2024 · एक बारह बाय दस का कमरा कितना बड़ा हो सकता है? ये अभी हाल ही में उसे पता लगा। इस कमरे में एक बार घुसने के बाद आदमी गुम हो सकता है। वो घंटों एक जगह बैठा रह सकता है और सैंकड़ों बार जगह भी बदल सकता है।
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27 OCT 2024 · सारी उम्र जीने को कोसते रहे, किसी किस्मत नाम के कव्वे को बुलाते रहे-भगाते रहे। ऊंची पतंग भी उड़ाते रहे और कटने से भी घबराते रहे।
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21 OCT 2024 · एक दिन शायद उन्होंने भी अपने कुएं में झांक लिया था। शायद ख़ुद को ही देख लिया था। उसके बाद वे वैसी न रही। फिर हम भी उनसे वैसे न रहे।
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4 OCT 2024 · सोचने वाली बात है कि समय क्या खाता होगा? क्या समय वेजिटेरियन है या नॉन–वेजिटेरियन, या कोहली की तरह वीगन? कहीं समय परजीवी तो नहीं? या कहीं ऐसा होता हो कि हर बीतते पल को आने वाला पल निगल जाता हो और डंग बीटल की तरह वक्त लुढ़कता चला जाता हो?
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1 OCT 2024 · तुम्हारे भरोसे का आधार तो मैं ही हूं फिर मेरे भरोसे का आधार तुम क्यों नहीं हो? क्या मैंने भविष्य देख लिया है या मुझे अतीत ने ही डस लिया है?
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30 SEP 2024 · आदमी को जितना सोचना चाहिए, उससे ज़्यादा सोचने की बीमारी से वह अभिशप्त है।
Spoken word poetry in Hindi by Lokesh Gulyani
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Author | Lokesh Gulyani |
Organization | Lokesh Gulyani |
Categories | Philosophy |
Website | - |
lokesh.gulyani@yahoo.in |
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